Thursday, October 22, 2015

मैं पारदर्शी

तुम्हें पता है न कि,
हूँ, मैं पारदर्शी तुम्हारे लिए ,मुझे भी है पता ...............क्यूँ घुल जाती हूँ ,तुम्हारे सामने और,सोख लेते हो तुम ,मेरी जलन , परेशानी , पीड़ा ,अपने नर्म होठो के,सुरभित स्पर्श से ..............................बुहार देते हो ,मिथ्याबोध , भ्रम , नुक्स ,अपनी झिलमिलाती पालको की हल्की सी सरसराहट से ..............मुझे है पता कि,मैं हूँ पारदर्शी तुम्हारे लिए.......मुझे है पता .....सिर्फ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए ..................