Thursday, March 19, 2015

अनोखा प्यार

उस नाज़ुक ...मखमली हवा को ,
बाँके गबरू छैला से .....
न जाने कैसे जाने - अनजाने .....ही प्यार हो गया ।
वह करती उसका पीछा दिन औ रात
उसे सहलाती तो छेड़ जाती कभी,
बिखेरती उसके कदमों मे,
बेले - जुही - चम्पा की कलियाँ ।
कभी ले जा उड़ा अपने संग ,
गहरी - हसीन वादियों की बाहों मे ।
नौजवान भी दीवान उस पगली हवा का,
दोनों यथार्थ से परे , अपने मे ही मस्त ।
अपनी इस एन्द्र्जलिक दुनिया मे प्रसन्न,
पर किस्मत को था न मंजूर ....
पड़ गयी दुष्ट कुमारी की शौकीन नज़र ,
गबरू नौजवान के तन की और ,
नहीं कर पायी सहन बाँके का इंकार ....
उठवा लिया भेज लाम औ लश्कर
बेबस हवा बहुत चीखी और चिल्लाई ,
उखड़े पाँव सेना के घड़ी - दो घड़ी ,
पटका सिर ...हुई लुहलहान...किया पीछा ...
गुस्से से बौखलाई करती सब तहस - नहस ,
आग - बबूला प्रचंड बवंडर उठाती,
चीखती -- फुफकारती - गरजती ....
आज भी ढूंढती अपना सनम ..................@ पूनम