Tuesday, December 16, 2014

उन मासूमों के नाम .......

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देख तूने जो मागी थी पेसिल रंगीन ,
बाबा आज ही तेरे लिए लाये हें,
उठ .....भर दीवारों को कर चितकबरा ,....
नहीं ...नहीं टोकेगा कोई.....
तूने कल जो छुपाई दादी की ऐनक,
खेल ही खेल में, ढूंढती परेशान ....
आ ....चल जल्दी दे जा ,
तेरी उधड़ी पड़ी निक्कर की सीवन ,
सुई ले दादी हाथ में परेशान है ..........
दादा जी की टूटी पड़ी छड़ी ,
तूने कहा जोड़ेगा टेप से ,
देख लिए बैठे हाथों में ,
टकटकी बांधे दरवाजे पे , अब तो आजा ......
सुबह जल्दी - जल्दी मे प्लेट में छोड़ी,
अधखाई रोटी और लुढ़का दूध का ग्लास ,
अम्मा , हाथ मे लिए झाड़न खड़ी है ,
ठिठकी ...मूक.......अचेत .........................
बाबा .....अवाक....मौन.....
बस गूँजे कानों में एक ही आवाज़ ,
बाबा , इस बार छुट्टियों में चलेंगे कही दूर ...................बहुत दूर
नई सी जगह ......जहाँ न गया हो कोई ,
हाँ ...रे ...पगले जरूर ......अबकी बार ...........दूर ...
बहुत दूर.................
@ पूनम कासलीवाल