Saturday, April 5, 2014

हुआ ये क्यूँ कर?

वो दो जिस्म एक जान थे ,
धड़कता था एक ही दिल ,
साँसों का आरोह - अवरोह भी सम,
दर्द - आँसू - मुस्कान - प्यास भी वही .........
फिर ये क्या हुआ कि,
एक जिस्म हो गया जुदा,
अचानक उठ चल दिया ,
न कोई ताना - न उलाहना,
बस फीकी सी उदास नज़र,
हल्के - थके से कदम ,....
दूर जाती मटमैली सी छाया .............
रह गया जो, अब तक वही है पड़ा ,
मुर्दा सा - बुझे अलाव की राख की माफिक ,
भीतर ही भीतर धधकता ,
फिर धीरे- धीरे होता विलीन ............
हुबबू थे तो यह क्यों हुआ ....हुआ ये क्यूँ कर??????