Sunday, February 16, 2014

रचती अपना आज ...कल.....काल ...

वह नहीं सह पाई ताप ,
तेरी जुदाई का ,
निकल पड़ी नंगे पाँव,
ठंडी - जलती बर्फ पे ,
भागती - दौड़ती ,
निकलता धुआँ तलवों तले ,
सिसकी - आहों से सर्द होंठ ,
जमती लकीरें जर्द गालों पे ,
 यादों - वादों की बनती पगडंडियाँ,
ऊबड़ - खाबड़ ,खोती शून्य में....
बनती लहू की टेड़ी- मेड़ी डगर ,
छिलती खाल-  झिल्ली - मांस ,
बनाती - उकेरती अद्भुत नक्काशी ,
रूखी - कठोर - भावशून्य - जमीन पर ...........
रचती अपना आज ...कल.....काल .........!!!