Saturday, April 20, 2013

छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी

छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी ,
न राजा न परी न चाँद की जुबानी ,
घंटों की लंबी यातना और यंत्रणा,
अभी तो न जाना अपने होने का मतलब ,
अभी तो फखत खेल - खिलौने की दुनिया ,
हाँ - हाँ माँ डराती कभी- कभी दाड़ी वाला बाबा ,
झोली मे बच्चे छुपा ले जाए दूर देस । 
न जाना लाड़ो घर से दूर खेल यही गली मुहाने । 
पूरे दो दिन गुड़िया कैद अपने ही घर के नीचे ,
अम्मा - बाबा रो - रो ढूँढे सारा दुनिया - जहां ।
नीचे के बंद कमरे से सुन करहाने की आवाज़ ,
अम्मा चौंकी , बापू ने की पुलिस से फरियाद ,
क्षत- विक्षत - कटी- फटी वह नन्ही सी जान ,
अब तो बस दुआ है बस बच जाए गुड़िया की जान ,
मिले सज़ा एसी पापी को फिर न पैदा कोई शेतान ॥

Thursday, April 18, 2013

जिद्दी

मेरा अकेलापन बहुत जिद्दी है ,
नन्हे बालक की तरह ,
पल भर को बहल जाता है ,
माटी के खिलौने से |
फिर चिपक जाता है मुझसे ,
हवा में तैरते रोयों की तरह ,
जो होते हुए  भी नहीं दिखता|
हजारों की भीड़ मे भी रहता है ,
हमेशा मेरे बहुत  आस -पास |
भीतर कहीं दबा - दबा ,
उभर आता है अचानक ,
हड्डियों में जमे दर्द की तरह,
टीस, वेदना और सालता है मुझे |
यही दर्द बन जाता है दवा भी ,
भावों का रूप ले ...
कविता बन बह जाता है |