Monday, March 25, 2013

तेरी लाड़ली ... कमजोर नहीं

जब सुनहरे आसमान तले ,
लाडो के सपने फला करते थे,
भीगी - भीगी पलकों पे,
नित सपनीले ख्वाब उपजाते थे , 
दिन - रात खोई - खोई रहती थी ,
बिन बात हँसती - रोती थी ,

तब माँ का जिया हुलसता था ,
हर आहट पर मन धधकता था ,
दिन - रात पलकों पे कटते थे ,
घड़ी की सूईया गिनती थी ,
दरवाजे को हरदम तकती थी ,
एक और नसीहत बढ़ जाती थी ,

लाड़ो पलाश सी महकी - महकी ,
दावानल सी दहकी - दहकी ,
अम्मा बिचारी सहमी - सहमी ,
हँस कर बिट्टो ने मरहम लगाया ,
तेरा डर तो है बिलकुल जायज़ ,
कोमल हूँ माना , नाज़ुक भी पर ,
कमजोर नहीं तेरी लाड़ली ... कमजोर नहीं ॥