Thursday, March 7, 2013

कहीं न कहीं कुछ न कुछ

सात परतों मे दफन............
सात जन्मों के स्वप्न ...... 
यूं ही नहीं फूट जाते ...
कहीं न कहीं कुछ न कुछ ....
कभी पंडोरा कहा तो फ्लोरा भी कहलाई ...
देवदासी बन कर देवालय मे गई नचाई ,...
हव्वा के रूप मे हमेशा पापिन ही कहाई ....
सुंदर कला के नाम पर शिल्पी ने ..... 
दरों - दीवारों पे नग्न रूप मे सजाई ,
जीवित - जली नाम हुआ धर्म का ...
तेरी सुध किसको कब आई ....
प्रगति - आधुनिकता की आड़ मे ,
दे दिया झांसा तुझे कंधे से कंधे का ....
घर - बाहर दोनों जगह गई पिसवाई ,
बनी मूर्ख बार बार.... हर बार औरत कह ,
तेरी भरी सभा मे खिल्ली ही गयी उड़ाई ....
चमकीला सा दिखा के सिक्का ....
खोटे सिक्के सी गई उछलाई....
सात परतो मे दफन ...सात जन्मो के बंधन यूं ही नहीं टूट जाते ?????
( चित्र गूगल आभार )

Tuesday, March 5, 2013

सन्नाटे की आवाज़

क्या कभी सुनी है तुमने ,
सन्नाटे की आवाज़ ????एक ताल - लय - सुर है इसमे भी ,दिल को जो कर दे चाक ,वो टीस है इसमे ॥
 
भिगो दे भीतर तक ,वो रस-धार है इसमे ॥ जैसे अंधकार --- काला - गाढ़ा - घनघोर ..... पर भींच पलकें देखो ,इसमे भी अनेकों रंग ,गहरे - हल्के -स्याह - चितकबरे ,टिमटिमाते --- फुटते- अनेक सितारे ... करो बंद आँखें और देखो ... देखो तो सही ...
अजीब है न ?
चमकीला अंधकार ,सन्नाटे की आवाज़ ,या फिर सही है न ..... ?