Thursday, February 21, 2013

तब से यही हूँ .... यहीं हूँ


नहीं नहीं नहीं ....बस यही बुदबुदा रही थी 
बस मत पलटना ,
मत मूड कर देखना ,
मै न जा पाऊँगी ,
पर तुम तो हमेशा से रहे जिद्दी ,
मेरी सुनी कब जो अब सुनते ,
आखिर जाते- जाते पलट ही गए ,
हल्की सी चोट्टी हंसी और एक उंगली का इशारा ,
पलट कर , कर ही गए ,
देखो , अब न जा पाऊँगी ,
देखो तब से यही हूँ .... यहीं हूँ

Sunday, February 17, 2013

अब उसे सिरफिरे होने पे भी कोई एतराज नहीं ....

सिरफिरी और पागल घोषित किया गया उसे ,
वह आज सोचने जो लगी ,
वह आज बोलने जो लगी ,
वह आज विरोध जो करने लगी ,
वह आज तय जो करने लगी ,
वह आज चयन जो करने लगी ,
वह आज फैसले जो लेने लगी ॥ 

लीक पर चलो ,
ठोक- बजा कर ,
पूरी कायवाद कर,
अपने इस्तेमाल के लिए ,
लाये थे तुम्हें ।
जितना हो जरूरी ,
उतना ही बोलो ,
जब तक हम न कहे ,
जहाँ हो वहीं चिपकी रहो ,
वैसे भी तुम तो न घर की हो घाट की ,
तुम्हारा नाम भी तो अपना नहीं ,
न कोई पहचान ,
क्या भर सकती हो कोई भी कागज- पत्तर,
हमारे दिये नाम के बिना ,
जब नहीं तुम्हारा कोई अस्तित्व ,
तो फालतू मे इतना शोर क्यों करो ,
जाओ जाकर कुछ पोंछो ,
कुछ साफ करो ॥

पर वह क्या करती ,
उसके सिर के चारों तरफ ,
जैसे कुछ उग आया था ,
जो दिखता तो नहीं ,
पर हर पल - हर घड़ी ,
उसे कौंचता रहता ,
उसे उकसाता - बहकता ,
पगली ! मत आ इस छलावे मे ,
तू भी एक शरीर -एक आत्मा है,
बरसों से कुचली  गयी ,
रक्त -रंजित- उपेक्षित ,
अब न कर देर ,
कर आज़ाद अपने को ,
विभित्सित इन विचारों से ,
तेरा पागलपन कहीं भला है .,
इसलिए, अब उसे सिरफिरे होने पे भी कोई एतराज नहीं .....