Wednesday, January 23, 2013

बूंद - बूंद जिंदगी



माँ पानी भर - भर सुराही खरीदती थी ,
बिटिया इनमा छोटा - छोटा सुराख रहित ,
पता न कहाँ से पानी चू जाए ,
इन बेचन वारी का ,बस हमरी अंटी ढीली किए जाए ,
सुराही वाली भी बरामदे मे सुस्ताती हुई ,मुसकाए ,
हाँ - हाँ पूरा तसल्ली कर लिजो,
हम न कहीं भागे जा रहे ।
बिट्टों तो बस दोनों की नौक- झोंक का मज़ा ले रहे ,
अम्मा बिट्टों को ख़रीदारी के गुर सिखाती रही ,
संग - संग कुछ जिंदगी भी समझा रही ,
बिटिया तो मस्ती मे डूबी कुछ और ही गुनगुना रही ,
आज , बिटिया को अम्मा है बहुत याद आ रही ,
लबालब है जिंदगी ,न दिखती कोई दरार या तड़कन ,
फिर भी जाने कहाँ से रिस रही ... रिस रही !!!!!!!

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