Monday, January 14, 2013

छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ..अब क्या कहूँ ???

जब बोलते हो कर्ण , सुनते हो होठ ,
तब कितना भी पटको सिर ,
आवाज़ लौट- लौट आती है,
जो चीखती - दहाड़ती है भीतर ,
वह वही लावारिस लाश सी दम तोड़ जाती है ,
भिनभिनाती है वादो व नारो की मक्खियाँ ,
सत्ता - वर्दी के कूड़ेदान मे कहीं दफन हो जाती है ,
क्या कहूँ ....किससे कहूँ .... और कभी तो लगता है ,
छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ...?
छोटे - छोटे मासूम बच्चे ,
जब किसी के पागलपन का हो शिकार ,
हवस और नशा मिल लूटे अस्मत ,
नंगा जिस्म हो पड़ा किनारे ,
न कोई रहनुमा न कोई मुक्ति दाता,
जिनके हाथ कानून वही घातक,
क्या कहूँ ....किससे कहूँ .... और सच मानो तो ...
छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ..अब क्या कहूँ ???.?

6 comments:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति,,,

    recent post: मातृभूमि,

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  2. यही त्रासदी है

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  3. अत्यन्य भावुक और मार्मिक ।

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  4. भिनभिनाती है वादो व नारो की मक्खियाँ ,
    सत्ता - वर्दी के कूड़ेदान मे कहीं दफन हो जाती है ,

    ....दिल को छूती बहुत मार्मिक रचना...

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  5. jab samaaj aur raastra patan ki or unmukh ho to rachanakaar ki jimmedariya aur badh jaati hai. hrady ko jhakjhorti rachana.

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