Thursday, November 22, 2012

मै ही तो हूँ


चूल्हे मे लकड़ी सी जलती ,
पतीली मे दाल सी गलती,
चक्की मे दानो सी पिसती ,
टाइप रायटर मे रिबन सी घिसती ,

मै ही तो हूँ . सब और , हर तरफ .

सड़क पर पत्थर सी कुटती,
घर पर फर्नीचर सी सजती ,
कुएं पर काई सी जमती .


मै ही तो हूँ , सब और , हर तरफ .

खुद की तालाश मे , खुद को खोजती ,
ख़ामोशी मे शब्दों को तलाशती ,
भीड़ मे अकेलेपन को  निहारती ,
अजनबी में किसीको सहराती .

मै ही तो हूँ , सब और , हर तरफ .
  इति

Monday, November 19, 2012

जीवन की धुरी

पता नहीं क्यों , जब होता है शुरू दिन ,
चाहे जब भी ,उस हर पल की 
धुरी तुम क्यों बन जाते हो ...
स्वयं ही |
भोर की पहली किरण छूती है मुझे ,
गुलाल हो जाती हूँ , तुम्हारे अहसास से |
बहती हवा का झोंका लहरा जाता है केश ,
उंगलियाँ तुम्हारी फिर जाती हैं जैसे |
चमकती किरणों की जलती चुभन ,
लबों पर मानो तुम्हारी जुम्बिश |
शाम की ढलती लाली का सुर्ख अबीर ,
तुम्हारी चाहत का रंग जैसे मेरे संग |
सुरमई आकाश पर चन्द्र की शीतलता ,
खो कर पाने की यही है सम्पूर्णता |
पता नहीं क्यों , जब होता है शुरू दिन ,
चाहे जब भी ,उस हर पल की 
धुरी तुम क्यों बन जाते हो ...
स्वयं ही ..............