Thursday, June 28, 2012

उफ्फ्फ्फ़ ...थोडा ....बहुत थोडा

सुनो ---कहो ?-----सच -सच बताना ?..हूँ , बोलो--. प्यार करती हो ?...हाँ ...कितना ?---मतलब..?---मैने पूछा ..कितना ..?...वही तो क्या मतलब ..कितना ..?
इसका भी है क्या कोई पैमाना .....माप- तोल, ह्म्म्म मान लो उतना जितना तुम चाहो ..
---- फिर भी कितना ..???
उफ्फ्फ्फ़ ...थोडा ....बहुत थोडा 
चुटकी भर --- आटे में नमक सा ,
सावन की पहली फुहार सा ,
माटी की कच्ची सुगंध सा ,
चांदनी में नहाये गुलाब सा ,
मद्धिम --- मद्धिम सी चूल्हे की आंच सा ,
न कम - न ज्यादा --- सीमित---नपा- तुला ,
ह्म्म्मम्म --- तो बनियागिरी करती हो ?
जितना है ज़रूरी , बस उतना ,
अगर करूं अधिक तो डूब जाओगे ,
घुटने लगेगा तुम्हारा ,
तलवों का गुगुदाती रेत सा ,
हल्की - नर्म थपकी सा ,
भोर की सिंदूरी आभा सा ,
चिलचिलाती धुप में नाज़ुक छाँव सा..
बस ऐसा ही है मेरा प्यार ---
टकीला के शॉट सा,
बस दो या तीन --- न कम न ज्यादा ----
वो यह सुन हल्के से मुस्कुरा दिया ,
तेरी इसी गुलाबी मुस्कान सा .........थोडा --थोडा --न कम न ज्यादा ...थोडा ---

Wednesday, June 27, 2012

वह पुराना संदूक


अँधेरी ,पिछली कोठरी में  ,
रक्खा ...बरसों से ,
वह पुराना संदूक ...बड़ा -भारी  औ उदार ,
अम्मा के दाज का .....या उसेस भी पहले का.....
बंद न जाने इसमें ,
कितने सपने ,
कुछ हुए पूरे ,
कुछ आधे - अधूरे .
अरमानो की पोटली,
अनुभूति का पिटारा ,
ढो रहा है भार पीढ़ी दर पीढ़ी ,
अनगिनत मुंडन ,
कनछेदन - जनेऊ आदि  अनुष्ठान ,
निबटाये इसने  आकस्मिक --निर्विघ्न ,
टी-सेट ,चद्दर -मेजपोश ...बेमेल ,
साडिया - ब्लाउज़ पीस , पैंट -शर्ट ..
कितने अनगिनत इसमें जोड़े ,
सलमे -सितारे से जड़ी चुनरी ,तो 
मखमली रजाई के कवर  बेशुमार ,
लाल पोटली में चन्द काले होते सिक्के ,
चांदी -जड़े गोले और बड़े -बड़े थाल ,
मुकुट -दीपक - कलावा -दुशाला ,
पता नहीं कितने तांबे -पीतल के कटोरे ,
जाने खुदा उनपे किस किस का नाम .
फलाने की शादी मे मिला ग्लास का सेट ,
लिखा जिस पे रीना और मोहन -1945 
अनगिनत - सौगातें ,
बेमिसाल - यादें ,
असाध्य भेंटें ,
मिलनी - इत्यादि - इत्यादि ..
बंद ------न जाने इसमें और क्या क्या ...........

Monday, June 25, 2012

हाय ! तेरी इस अदा से मुझे प्यार हो गया ..

लपक कर मिली गले ,
नदी सागर से ...
सागर हौले से सकपकाया ,
धीरे से मुस्काया ...
नदी थी मस्त - अल्हड़ ,
चूम माथा सागर का, नदी  बोली ,
हाय ! तेरी इस झेंप से मुझे प्यार हो गया .
चल -चलते हैं कही दूर ,
अकेले में जहाँ ,
सिर्फ हों मैं और तू ..
तू और मै .....
खिलखिलाई फिर  बोली  ...क्या है ऐसी कोई जगह ..?
सागर सकुचाया ....
अरुणित मुख -- संकेत किया ,
उस तरफ  चट्टानों की ओर ..
वहाँ ..है एक निर्जन घाटी ,
पदचापों - शोर - से दूर ,
नदी आनंदित हो गुनगुनायी ,
बड़ी - बड़ी आंखे कर ,
हैरान हो  -- वाकई ?
चूम माथा नदी का ,बोला सागर ,
हाय ! तेरी इस अदा से मुझे प्यार हो गया ..।।