Saturday, April 14, 2012

मेरी हर साँस का तार जुड़ा तेरे नाम से ,
तू भी तो लेता होगा जब श्वास तो ,
महक मेरी ही आती होगी .....♥ ♥♥


मेरी महक में डूबा - डूबा ,
पूरा दिन आपाधापी में गुजरता होगा ,
रात होते ही उसी सौन्धाहट की ,
नर्म - नर्म चादर लपेट सोता होगा .....♥


 यूँ तो हम भी दिन भर तेरी खुशबू में डूबे,
इतराए - इतराए फिरते हैं ,
पर न जाने कब आओगे तुम ,
इसी सोच में ख्वाब सजाया करते हैं ....♥ ♥

Monday, April 9, 2012

हरबार ...बारबार.

बारबार हर बार क्यों सिद्ध करना पड़ता है ,
अपने आप को,
कभी अच्छी - बच्ची ,
तो खानदानी बहू,
आदर्श पत्नी ,
सुघड़ गृहणी ,
पतिव्रता स्त्री ,
नैतिकता की सीढ़ी चढने  का ठेका क्या बस है मेरा ....
घर और बाहर दोनों के बीच रखती सामंजस्य ,
खटती दोनों ही जगह ,
हरबार ...बारबार..फिर वही तुलना ..
फिर वही उपहास ,
वही स्त्री होने का ताना ,
क्यों नहीं देखा जाता स्त्री - पुरुष को एक ही सांचे में ,
आधुनिकता  के साथ - साथ , लदा है बोझ क्यों परम्परा औ अनुशासन का ...
वही लक्ष्मण रेखा बारबार --- हरबार --
वही हाहाकार----- बार बार -- हरबार ,
गर श्रेष्ठ नहीं तो कमतर भी नहीं ,
सिर्फ भोग्या नहीं ,इंसान भी हूँ..
मेरे भीतर भी है आकांक्षा - कामना ,
मत करो -- मत करो -- मत करो
इतना उपहास - बार बार -- हरबार ....