Monday, March 12, 2012

कलाकार

वह एक कलाकार की भांति चित्र बनती है ,
रंग - तुलिका और कागज की बजाय ,
जनता के समक्ष खुद को सजाती है 
कुछ मित्रों के मध्य ,बिन बात मुस्कराती है ,
उसकी स्मित रेखा ज़्यादा ही खिच जाती है 
दो - चार लोगो के बीच, गंभीर हो जाती है ,
हल्के से सिर हिला दुनिया की चर्चा कर जाती है 
अन्य परिजनों के बीच शर्मीली -शांत मूक रह जाती है ,
उसकी मौजूदगी ही वहां से नज़रंदाज़ हो जाती है 
लोकप्रिय होना चाहती है ,घुल - मिल जाना चाहती है 
समान बनाना चाहती है ,साबित करना चाहती है 
उसे देख सब उसकी तरह ही बनाना चाहती है 
कितना अपनापन ,सामंजस्य और उन्मुक्तता ,
पर अक्सर एकांत मे वह अपने से ही करती है, 
एक सवाल बार - बार ....
कौन हूँ मैं.....मैं हूँ कौन ??????