लोंगो की भीड़ मे, दबी |
लम्बी, पतली, गोरी, नाजुक, वह |
बड़ी अदा से इशारा करती , उकसाती,
ब़ार- ब़ार झांकती , कहती ,
एक ब़ार तो हमें आजमाओ |
जिन्दगी का कश लगाओ |
दुनिया कहाँ से कहाँ पहुंच गयी है,
तुम अभी तक वही खड़े हो,
अपनी जिद्द पर अड़े हो |
सब गम भूल जाओगे ,
बस एक के बाद एक ,और हमें ही ,
याद करते रह जाओगे |
हमने भी इशारे को समझा ,
पर मन थोडा झिझका ,
दिमाग ने तो रोका ,पर दिल के आगे ,
उसकी नहीं चल पाई|
लपक कर हमने उसकी तरफ हाथ बढाया,
उंगलियों मे दबा कर बड़े प्यार से सहलाया ,
बड़ी नजाकत से होठो से लगाया |
पहेले ही कश मे ........................बेदम कर गयी,
यह तो अंगार थी ,
नाक ,आंख सब धुएं से भर गयी |
हम तो कर रहे थे सिगरेट की बात ,
आप तो कुछ और ही समझे यार |
इस पतली ,गोरी , नाजुक मे जो नशा है ,
वह भला किसी से क्या छिपा है ,
बनाने वाले भी करते है इसका विरोध
पर पीने वाले मानते नहीं यह अनुरोध |
हम तो यही कहेगे इसके चक्कर में न आना ,
नही तो पड़ेगा अस्पताल जाना |
यह है मीठा नशा ,जो करता है शरीर तबहा|
इति