कल मौसम का इशारा समझ ,
निकल पड़े झील किनारे ,
धूली धूप चमक रही थी लहरों पर,
घास ,पाती की परछाई दे रही थी निमंत्रण
निकल पड़े हम दूर साहिल तट पर,
भर ली झोली ,रंग बिरंगी सीपियो से ,
अपनी धुन मे मगन चुन रहे थे स्वस्थ और सुंदर ,
तभी पैर में चुभा एक टूटा शंख ,
मुहं चिडाता बोला ...........
स्वार्थी इंसान ,
कर ली न छंटनी , अपनी सुविधा अनुसार ,
तुम लोग भी न , नहीं सह पाते जरा सा भी भोथरापन,
जन्म से ही आदत है तुम्हे चुनने की ,
जो, कितना भी सोचो जाती नहीं ,
तुम्हारे भीतर का खोखलापन
बाहर तलाशता रहता है सम्पूर्णता .
रिक्त , शून्य , खंडित मन ,
भागता है , विपरीत सौन्दर्य के पीछे ,
यही है " सृष्टि का सत्य "
अगर कोई करने लगे तुम्हारी भी छंटनी ???????????????????