Wednesday, November 30, 2011

छंटनी


कल मौसम का इशारा समझ ,
निकल पड़े झील किनारे ,
धूली धूप चमक रही थी लहरों पर,
घास ,पाती की परछाई दे रही थी निमंत्रण  
निकल पड़े हम दूर साहिल तट पर, 
भर  ली झोली ,रंग बिरंगी सीपियो से ,
अपनी धुन मे मगन चुन रहे थे स्वस्थ और सुंदर ,
तभी पैर में चुभा एक टूटा शंख ,
मुहं चिडाता बोला ...........
स्वार्थी इंसान ,
कर ली न छंटनी  , अपनी सुविधा अनुसार ,
तुम लोग भी न , नहीं सह पाते जरा सा भी भोथरापन,
जन्म से ही आदत है तुम्हे चुनने की ,
जो, कितना भी सोचो जाती नहीं ,
तुम्हारे  भीतर का खोखलापन
बाहर तलाशता रहता है सम्पूर्णता .
रिक्त , शून्य , खंडित मन ,
भागता है , विपरीत सौन्दर्य के पीछे ,
यही है " सृष्टि का सत्य "
अगर कोई करने लगे तुम्हारी भी छंटनी ???????????????????

Monday, November 28, 2011

पता नहीं ?


उनका मन बहुत दयालू है ,
प्रतिमाह फटी - पुरानी उतरन ,खिलौने ,
पास की झोपड़ -पट्टी में दे आती हैं |
पहनने वालों का तो पता नहीं ,
वह स्वयं अख़बारों में छप जाती हैं |

उनका मन बहुत उदार है ,
प्रतिवर्ष एक डरा- सहमा बालक ,
गाँव से उधार ले आती हैं ,
बच्चे का तो पता नहीं ,
वह स्वयं तारीफ़ तले दब जाती हैं |

उनका मन बहुत कोमल है ,
हर हफ्ते नारी निकेतन के चक्कर लगाते हैं ,
किसी मासूम कन्या को ,
अपने माली की बीवी बना लाते हैं|
माली का तो पता नहीं ,
वह रोज़ ताज़े गुलदस्ते सजवाते हैं |
इति.....