Saturday, November 26, 2011

अब समझती हूँ माँ.....!!!

तब लगती थी हर बात नसीहत 
हर टोक पर होती थी झुंझलाहट 
तब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ......
माँ बन कर जान पाई हूँ तेरी उलझन माँ 
वो इम्तिहान के वक़्त वही बैठे रहना 
आधी रात को उठ चाय का बनाना ,
सब कुछ दोहरा लिया न की रट लगाना , यह सब कितना किलसाता था , तब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ .. मेरे इंतज़ार में दरवाजे पर खड़े रहना , कहाँ रह गयी थी अब तक कह झिडकना , हाथ से बस्ता ले चल खा ले अब कुछ , तेरी ही पसंद का बनाया है कह दुलारना , अब मैं भी कुछ कुछ तेरी जैसी हो गयी हूँ माँ ,. तब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ.....!!!

Tuesday, November 22, 2011

कुछ नहीं भूली हूँ मैं

 नहीं भूली हूँ मैं,
पूस की बर्फीली रात में,
नलके के नीचे बर्तन रगड़ना,
सबको सुला बत्ती बुझा ,
चुपके से सोना ,
नहीं भूली हूँ मैं.....!
जून की तपती लू में,
थैला पकड़ बाज़ार जाना ,
सबकी पसंद की चीजें ,
लड़ - झगड़ के बनिए से लाना ,
नहीं भूली हूँ मैं.....!
सावन की छमछमाती बरसात में,
छाता ले स्टॉप से बच्चों को लाना ,
टपटपाती साडी में कंपकंपाते हुए ,
जल्दी - जल्दी कलछुल का चलाना ,
नहीं भूली हूँ मैं.....!
सब याद है मुझे ....माँ,
कुछ भी नहीं भूली हूँ मैं ...!!!