Tuesday, June 7, 2011

mahka jivan

करके तुम्हें अपना सर्वस्व समर्पण ,
रह गया कोरे कागज़ सा मन |
न कालिख,  न दाग ...
न हर्ष , न विषाद ...
न द्वेष , न क्लेश ....
तुम्हारे प्रेम से परिपूर्ण एक नाज़ुक दर्पण |
न दिन , न रात ...
न धूप , न बरसात ....
न जड़ , न चेतन ....
तुम्हारी यादों की खुशबू से
महका - महका जीवन .....!!

Monday, June 6, 2011

bachpan

मेरे भीतर का बचपन,
अब भी मन मे पलता है |
बारिश की बूंदों को देख,
कागज़ की कश्ती सा डोलता है|
बादल की गर्जन पर ,
बिजली सा चमकता है |
लू के गर्म थपेड़ों में ,
बर्फ के गोले सा पिघलता है |
पूस की ठंडी रातों में ,
अँगीठी की आंच सा तपता है |
बसंत की मीठी बयार में ,
कोयल सा कूकता है |
मेरे भीतर का बचपन ,
अब भी मन में पलता है |...