Friday, February 25, 2011

ऐसा क्यों होता है ,

ऐसा क्यों होता है ,


जिन्दगी गुज़र जाती है पर मन का मीत मिलता नहीं


मौसम बदल जाता है पर मन का फूल खिलता नहीं


इस गांठ को सुलझाते यह छोर और फंसता जाता है


ऊपर से हँसता दिल भीतर ही भीतर रोता जाता है


छोटा सा सपना कही आँखों में ही अटका रह जता है


साथ की चाह में सूनापन अधिक बढता ही जाता है


पाने की चाहत में हरदम कुछ खोता ही जाता जाता है


ऐसा क्यों होता है ...ऐसा क्यों होता है ....ऐसा क्यों होता है ???



Tuesday, February 22, 2011

मुट्ठी में बंधा वक़्त

कितना कसके बंधा था मुट्ठी में ,
फिर भी चुपके से निकल गया |
तेरे - मेरे बीच ठहरा वह वक़्त ,
हाथों से रेत सा फिसल गया |
अब भीतर धंस गया है वह पल ,
गहरे मन के किसी कोने में |
मेरे अंदर हम  दोनों  साथ चलते हैं ,
किस्से - कहकहे हवा में तिरते हैं |
पेड़ों से घिरी राह ख़त्म नहीं होती ,
नज़रों से मिली नज़र नहीं थकती |
तेरा अचानक ठिठक कर वह चूमना  ,
मेरा वह हलके से रुक कर सिहरना |
वक़्त जो बिताया था तेरे साथ कभी ,
ठहर गया है कहीं  जो बहता ही नहीं |

Monday, February 21, 2011

ख्वाब

पलकों के भीतर ख्वाबों को पलने दे ,


नशवर ही सही उसे कुछ पल जीने दे


झूठा ही सही, पर ख्वाब तो है - तेरा ,

मन में एक इन्द्रधनुष -सा खिलने दे ,

शीशे सा टूट जाता है ,बड़ा नाजुक है ,

...जब तक रहे , वहाँ इसे चमकने दे


जिन्दगी वैसे ही बेज़ार रुलाती है ,

उन हसीं  लम्हों को याद कर हँसने दे