Friday, September 23, 2011

Bisat

जिंदगी की बिसात पर ,
मोहरे से हम ..
एक घर मैं चली ,
ढाई घर चले तुम ...

4 comments:

  1. कुछ समझ नहीं आया..........शायद लफ्ज़ कुछ ज्यादा ही कम रह गए हैं |

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  2. lafz kam nahi rahe....aap jo bhi samjhna chae samjh sakte hae.....:)

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  3. और ढाई घर चलते-चलते
    कभी-अभी सामने वाला
    चेस-बोर्ड के पार भी
    गोटियाँ निकाल ले जाता है !
    और सामने वाला
    अपने एक घर में ही
    बैठा देखता रह जाता है...!!

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