Wednesday, December 28, 2011

nav varsh ki shubkamana

मैने कहा समय से ,
भूल जाओ क्या हुआ गत वर्ष ,
वह गम - थकान - औ विषाद ,
याद रखो बस वह लम्हा ,
जब आई होठों पे मुस्कान .
...वह देखो घर के आँगन से ,
बीच सड़क तक फैली है ,
नये साल की नई किरण .......
कल जाने क्या होगा ,
यह सोच न करूँ वक़्त बर्बाद ,
आज अभी जो लम्हा है ,
मेरा है सिर्फ मेरा ही मेरा ,
इसको कर लूँ मुट्ठी में बंद ,
हो जाये मुबारक यह साल......
आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएँ

Tuesday, December 20, 2011

ज़िंदगीनामा

अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर 
खुली किताब सी यह जिंदगी 
ढेरों किस्से औ कहानी,,
कुछ गम्भीर ,कुछ चुटकीले,
कुछ दुखद भीगे - भीगे ,
कुछ खुशी के खिले खिले ,
रंग - बिरंगे- स्याह -सफ़ेद पन्ने इसके ...
प्यार -गुस्सा -रूठना -मनाना,
ख्वाब -हकीकत -सच -झूठ 
विश्वास - आधार - आस्था  - संबध ,
कुछ पन्ने अब भी है अनछुए ...
कोरे - कड़क- स्याही से महके ,
कुछ हो गए ज़र्रजर - क्षत- विक्षत ,
बार - बार -लगातार उलटते - पलटते ,
कुछ की इबारत है इतनी सरल - सहज ,
समझ पाने में होती नहीं कोई अड़चन ,
कुछ हैं इतने अधिक दुरूहू -कठिन ,
कितना पटकूं सर नही आते समझ ...
जीवन के इस मध्यांतर पन्ने पे ,
अब भी लगता है जैसे अब भी हूँ ,
अपने आप से अपरिचित -अनजान,
खुद में - खुद को तलाशती - कुरेदती ,
रोज़ ही जुड़ जाता है नया कोई पन्ना ,
यही अब तक का ज़िंदगीनामा ..................



Friday, December 16, 2011

मुंह के बल


लोंगो की भीड़ मे, दबी |
लम्बी, पतली, गोरी, नाजुक, वह |
बड़ी अदा से इशारा करती , उकसाती,
ब़ार- ब़ार झांकती , कहती ,
एक ब़ार तो हमें  आजमाओ |
जिन्दगी का कश लगाओ |

दुनिया कहाँ से कहाँ पहुंच  गयी है,
तुम अभी तक वही खड़े हो,
अपनी जिद्द पर अड़े हो |
सब गम भूल  जाओगे ,
बस एक के बाद एक ,और हमें ही ,
याद करते रह जाओगे |

हमने भी इशारे को समझा ,
पर मन थोडा झिझका ,
दिमाग ने तो रोका ,पर दिल के आगे ,
उसकी नहीं चल पाई|

लपक कर हमने उसकी तरफ हाथ बढाया,
उंगलियों मे दबा कर बड़े प्यार से सहलाया ,
बड़ी नजाकत से होठो से लगाया |
पहेले ही कश मे ........................बेदम कर गयी,
यह तो अंगार थी ,
नाक ,आंख सब  धुएं से भर गयी |

हम तो कर रहे थे सिगरेट की बात ,
आप तो कुछ और ही समझे यार |

इस पतली ,गोरी , नाजुक मे जो नशा है ,
वह भला किसी से क्या छिपा है ,
बनाने वाले भी करते है इसका  विरोध 
पर पीने वाले मानते नहीं यह अनुरोध |

हम तो यही कहेगे इसके चक्कर में न आना ,
नही तो पड़ेगा अस्पताल  जाना |
यह है मीठा नशा ,जो करता  है शरीर तबहा|

इति 

Tuesday, December 13, 2011

धूल

माना की तेरी नज़र में  मेरी कोई औकात नहीं ,
राह मे बिखरी धूल ही सही ,
मत भूल हवा की मनमानी ,
किरकिरी बन पड़ गयी तो ,
आँख मलता रहेगा ,
ता उम्र यूँ ही ...

Saturday, December 10, 2011

pravah

तुम्हारी पेशानी पर झलकते ,
स्वेद - बिन्दुओ को ,'
आँचल मे सह्जेने को जी चाहता है

जी चहता है ,
स्वेद - बिन्दुओ के हेतु
सिमट आए मेरे आँचल मे ,
तो यह आँचल सार्थक हो

तुम्हारे राज में हमराज बन
खो जाने को जी कहता है

जी कहता है ऐसे ही खो जाने से
महामिलन की अनुभूति ,
प्राप्त हो मुझे भी एक ब़ार

पलको पर घिर आए ,
तुम्हारे इस गीलेपन को
पी जाने को जी कहता है

जी कहता है
और यह प्रयास
बन जाए प्रतीक
हमारे अनंत में खो जाने का

तुम और में का विभाजन
समाप्त कर ,
तुम से मे , में कहलाऊ
जी कहता है
इति.....................

Sunday, December 4, 2011

वह पगली

वह पगली यहाँ - वहाँ बुझे अलावो को कुरेद रही थी ,
सीत्कारती जलते हाथ को सहलाती ,
मासूम बालक सा दुलारती ,
मशगूल फिर उष्ण आग को इधर - उधर छितराती,
देखती रही उसे काफी देर ,
पर रोक न पाई अपनेआप को ,
पास जा बोली ,अरी पगली ..
क्या करती है , जलाएगी क्या खुद को ,
सर उठा निर्विकार दृष्टि से देखा मुझे ,
फिर देखा सपाट नज़रों से अपनी हथेली को ....
कुछ देर रुकी और बोली ....
कुरेद रही हूँ अपने , बुझे सपनों की राख ,
शायद कहीं हो कोई चिंगारी अभी बाकी........!!!

Wednesday, November 30, 2011

छंटनी


कल मौसम का इशारा समझ ,
निकल पड़े झील किनारे ,
धूली धूप चमक रही थी लहरों पर,
घास ,पाती की परछाई दे रही थी निमंत्रण  
निकल पड़े हम दूर साहिल तट पर, 
भर  ली झोली ,रंग बिरंगी सीपियो से ,
अपनी धुन मे मगन चुन रहे थे स्वस्थ और सुंदर ,
तभी पैर में चुभा एक टूटा शंख ,
मुहं चिडाता बोला ...........
स्वार्थी इंसान ,
कर ली न छंटनी  , अपनी सुविधा अनुसार ,
तुम लोग भी न , नहीं सह पाते जरा सा भी भोथरापन,
जन्म से ही आदत है तुम्हे चुनने की ,
जो, कितना भी सोचो जाती नहीं ,
तुम्हारे  भीतर का खोखलापन
बाहर तलाशता रहता है सम्पूर्णता .
रिक्त , शून्य , खंडित मन ,
भागता है , विपरीत सौन्दर्य के पीछे ,
यही है " सृष्टि का सत्य "
अगर कोई करने लगे तुम्हारी भी छंटनी ???????????????????

Monday, November 28, 2011

पता नहीं ?


उनका मन बहुत दयालू है ,
प्रतिमाह फटी - पुरानी उतरन ,खिलौने ,
पास की झोपड़ -पट्टी में दे आती हैं |
पहनने वालों का तो पता नहीं ,
वह स्वयं अख़बारों में छप जाती हैं |

उनका मन बहुत उदार है ,
प्रतिवर्ष एक डरा- सहमा बालक ,
गाँव से उधार ले आती हैं ,
बच्चे का तो पता नहीं ,
वह स्वयं तारीफ़ तले दब जाती हैं |

उनका मन बहुत कोमल है ,
हर हफ्ते नारी निकेतन के चक्कर लगाते हैं ,
किसी मासूम कन्या को ,
अपने माली की बीवी बना लाते हैं|
माली का तो पता नहीं ,
वह रोज़ ताज़े गुलदस्ते सजवाते हैं |
इति.....

Saturday, November 26, 2011

अब समझती हूँ माँ.....!!!

तब लगती थी हर बात नसीहत 
हर टोक पर होती थी झुंझलाहट 
तब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ......
माँ बन कर जान पाई हूँ तेरी उलझन माँ 
वो इम्तिहान के वक़्त वही बैठे रहना 
आधी रात को उठ चाय का बनाना ,
सब कुछ दोहरा लिया न की रट लगाना , यह सब कितना किलसाता था , तब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ .. मेरे इंतज़ार में दरवाजे पर खड़े रहना , कहाँ रह गयी थी अब तक कह झिडकना , हाथ से बस्ता ले चल खा ले अब कुछ , तेरी ही पसंद का बनाया है कह दुलारना , अब मैं भी कुछ कुछ तेरी जैसी हो गयी हूँ माँ ,. तब नहीं समझी पर अब समझती हूँ माँ.....!!!

Tuesday, November 22, 2011

कुछ नहीं भूली हूँ मैं

 नहीं भूली हूँ मैं,
पूस की बर्फीली रात में,
नलके के नीचे बर्तन रगड़ना,
सबको सुला बत्ती बुझा ,
चुपके से सोना ,
नहीं भूली हूँ मैं.....!
जून की तपती लू में,
थैला पकड़ बाज़ार जाना ,
सबकी पसंद की चीजें ,
लड़ - झगड़ के बनिए से लाना ,
नहीं भूली हूँ मैं.....!
सावन की छमछमाती बरसात में,
छाता ले स्टॉप से बच्चों को लाना ,
टपटपाती साडी में कंपकंपाते हुए ,
जल्दी - जल्दी कलछुल का चलाना ,
नहीं भूली हूँ मैं.....!
सब याद है मुझे ....माँ,
कुछ भी नहीं भूली हूँ मैं ...!!! 

Wednesday, November 16, 2011

धूप - छाँव


भूख से बिलबिलाता वह बालक ,
फकत चाह चंद बासी टुकड़ों की ,
झोली में उसकी उम्मीदों का चारा डाल गए ,
गाल थपथपा , तस्वीर खींच , लाखों यूँ ही पा गए .....

जिंदगी धूप - छाँव का खेल रही ,
सदियों तक कडकती प्रचंड आग रही ,
न मिली सुख की ठंडी छाँव कहीं ,
तरसता रहा चीथड़ों को कोई जन ,
औ आप मुफ्त ही रेशम के ढेर पा गए .....

किसी की सूनी आँख में न ख्वाब न तमन्ना है ,
जिंदगी बस दिन औ रात जीने फेर है ,
स्वप्न उन बंजर पलकों पर कभी फला नहीं ,
आप उनके सपनों की दुनिया सजा कर ,
तुच्छ नगमे गा कर यूँ ही नाम कम गए .......

न नाम औ न ही पहचान है कोई ,
जिसने जैसे पुकारा विशिष्टता है वही,
न कोई अंधी दौड़ है न कोई मुकाम ,
फिर भी जीने की पुरजोर कोशिश है कायम ,
सिर्फ एक नाम विरासत से ले ,यूँ ही वाहवाही पा गए ..

Wednesday, November 9, 2011

mera pyaar kam nahi..........

आखिर क्यों तुम कभी समझ नहीं पाए मेरी मज़बूरी को ,
क्यों नहीं देख पाए डब डबाती आँखों मे, 
कितना प्यार था , कितनी थी प्रीति,
दिखी तो दिखी बस आग और गर्मी ,
क्यों कर नहीं देख सके चारपाई से लगी माँ ,
और मेरी पीठ पर चिपके मेरे पिता,
विधवा सी दिखती बड़ी बहन ,
और इन सबके बीच झूलती मैं ...
क्यों नहीं समझ पाए चाह कर भी नहीं सींच पाई,
इश्क के इस पौधे को ,
प्रेम मेरा तुम से ज्यादा नहीं तो कम भी न था ,
फर्क है इतना कि अनेक बन्धनों मैं जकड़ा था ,
क्या करती कैसे छोड़ पाती यह सब ,
वक़्त ही न मिला की समझा जाती कुछ ,
पर अब भी एक आस बाकी है ,
जब तक है सांस मिलने का आसरा है ,
मरी नहीं है जड़ यकीं है मुझे ,
सीचा इसे दिल के आसुओं से हमने ..

Wednesday, November 2, 2011

भविष्य मेरा

तुम्हारे अधरों का स्पर्श ,
मंद- मंद , मृदुल ..
बालों, गालों, पलकों पर ,
कोमल , सुकुमार , सौम्य, नर्म ....
होठों को कोरों से ...
कानों की लौ तक ...
कमसिन , नाज़ुक , उदार ..
धीरे - धीरे , सहराता,
टटोलता - शनै: - शनै:......
जैसे छू रहा हो कोई ,
उँगलियों के पोरुओं से ,
शिला पर उकेरे अक्षर ,
पढ़ रहा हो एक - एक इबारत ,
पूरा इतिहास गढ़ा है जहाँ ,
औ फिर ,
मद्धिम वह चुम्बन ,
रच गए तभी ,
भविष्य तुम ...मेरा ..!!!!! 
इति

Friday, October 28, 2011

daan maen mila saaman

मैं सिर्फ एक चेहरा नहीं , जो सिर्फ सजाया जाये.... ..
मैं कोई मोहरा नहीं, जो सिर्फ बिसात पर चलाया जाये....
हसरत नहीं सिर्फ चाहत नहीं ,सदाओं पर कोई पहरा नहीं ..
एक रिश्ता नहीं सिर्फ तेरी जायदाद नहीं ,इंसा हु पुतला नहीं....
दिल टूट जाये ,रूह बिखर जाये ,सब बाकी बेजान रह जाये....
खोलो आँखें और करलो पहचान ,मैं दान मैं मिला सामान नहीं 

Monday, October 24, 2011

अपनी दिवाली


दिवाली के बाद का दिन कितना अच्छा होता है ,
सुबह - सवेरे निकल जाते हैं गली - मोहल्ले में ,
मिल जाते हैं कितने ही अधजले अनार ,पटाखे ,
स्याह - बुझी तीली से सटी कुछ फुलझड़ी ,
या कुछ अनफूटे - साबुत चकरी या बम ,
जूठन के ढेर में बची - खुची मिठाई ,
खील- बताशे , बर्फी या लड्डू एकाध ,
पार साल तो चली थी हवा बेशुमार ,
पा गए थे पूरा तेल और दिए अपार,
अम्मा ने भी तली थी पूरी- कचोरी और,
हमने जलाई थी रंग- बिरंगे दीपों की कतार,
खूब जम के होती है दिवाली हर बार ,
अपनी बस्ती भी करती है हुल्लड़ ,
दिवाली के बाद ..........हर बार ...............!!!!!

Thursday, September 29, 2011

कौन हूँ मैं...हूँ मैं कौन ?

कौन हूँ मैं...हूँ मैं कौन ?
तेरी निरंतर सहचरी ,
मेरे ही कारण तू होता है सुखी ,
या मैं कर जाती हूँ तुझे दुखी ..
तेरी सबसे बड़ी मददगार ,
या फिर तुझ पर एक बोझ ,
मैं चाहूँ तो तू छू जाए अस्मा ,
या फिर चाटे तू पल भर मैं धूल..
मैं तो हूँ तेरी मुलाजिम |
राज करना मुझ पर बहुत ही है आसान,
थोड़ा सा सयंम , औ कड़ा विचार ,
मैं हूँ तेरे हुक्म की गुलाम ..
अपनाओ मुझे ,लगाओ गले से ,
अटल , अचल , अविचल ,स्थिर ,
मजबूत , अगर रहो तुम तो ..
रख दूँ तुम्हारे पैरों  पे संसार ,
मत डगमगाना , न ही देना कोई ढील,
मैं तो रहती हूँ तेरे भीतर .....मैं हूँ तेरी ....
आदत 

Saturday, September 24, 2011

shai rup

कभी पूजा देवी के रूप में ,
कभी दुत्कार दासी के रूप में ,
इस ऊँच - नीच के मध्य झूलते ....
सहधर्मिणी का रूप न दे सके |
परेशान खींसे निपोरते इधर - उधर झाँकते..
कोरा नाटक
भोथरा छल
झूठा  प्रपंच
वास्तव में समानता कभी मान ही नहीं सके |
त्रिशंकु से
अपने में ही उलझे ...
मेरे हर रूप को माना मेरे धर्म ..मेरा फ़र्ज़...मेरा कर्तव्य ...
हाँ , मैं माँ हूँ ...
अथक पीड़ा के उपरांत किया सर्जन ..
हाँ , मैं बहन हूँ ...
सूनी कलाई सजा , घर   को बनाया  चमन ..
हाँ , मैं बेटी हूँ ...
नमकीन शरारतों से महकाया तेरा मन ...
हाँ , मैं पत्नी हूँ.....
एक आस - विश्वास पर छोड़ा  बाबुल का आंगन ....
हाँ , मैं वो सब हूँ , जैसा तुमने चाहा ,
कभी करो मेरी चाहत,
पर भी गौर .....
व्यर्थ ही नहीं मचाते हम शोर.........

Friday, September 23, 2011

Bisat

जिंदगी की बिसात पर ,
मोहरे से हम ..
एक घर मैं चली ,
ढाई घर चले तुम ...

Monday, September 19, 2011

साथ - साथ

पाप - पुण्य,
दोनों ही बहते हैं ,
गंगा जी में ....
साथ - साथ , एक साथ .....
धोने को ,
या 
कमाने को ....
मकसद चाहे जो भी हो ,
डुबकी तो दोनों ,
लगाते हैं साथ - साथ .....
हर - हर गंगे , हर - हर गंगे ,
बुद - बुदाते धीमे - धीमे ...
शांत - मौन मन ही मन ...
चीखते - चिल्लाते शोर ही शोर ...
पाप - पुण्य ,
दोनों ही बहते हैं ,
गंगा जी में ....
साथ - साथ ....एक साथ ....!


Wednesday, September 14, 2011

maun

मौन 
इसकी आवाज़ 
खुद ही सुनती हूँ 
करती हूँ स्वयं ही 
विषलेषण,,
ढून्ढतीहूँ ,
अनुतरित्त उत्तर ..
अपने सवालों से 
आप ही जूझती 
पाती हूँ हर बार 
अलग ही जवाब ....

Wednesday, September 7, 2011

एक बार फिर ....

एक बार फिर ....
फिर दहली धमाकों से दिल्ली ,
फिर लग गया रेड अर्लट सडकों पर ,
फिर मारी गई मासूम जनता बिचारी |
हो रही सत्ता के गलियारों में ,
आरोपों - प्रत्यारोपों की बौछार |
आखिर ऐसा क्यों होता है बार -बार ,
इतने बड़े शक्तिशाली तंत्र की ,
हर बार उड़ जाती हैं धजिय्याँ |
अपनी ही परछाई से सहमा है जन ,
डरी-डरी सूरतें ,हर आंख  हैं नम |
एक बार फिर कायर माँ को रौंद गए ,
हमारे सयंम को झंकार गए |
कब तक आखिर --- कब तक ...
बंद  करो यह मरने - मारने का व्यापार..
बंद करो यह अत्याचार ..बंद करो ....अब बस बंद करो .......

Friday, August 19, 2011

ab to aa jao

भर आया है प्यार मेरा ,
इन नैनों के कोरों तक ,
अब तो आ जाओ साजन,
सांसें न रुक जाये भोर होने तक |
माथे पर मेरे अगर ,
लबो का  तेरे हो कुमकुम ,
ह्रदय  मे गूंजे हल्का सा श्रृंगार ,
ठहर जाये धरती ,थम जाये अस्मा |
बाँहों की तेरी अगर,
मिल जाये चन्दनहार ,
आँखों मे तेरी देखूँ ,
डूब कर भी ,पा जाऊ सारा संसार |

Tuesday, August 9, 2011

Zindgi badal rahi hae

जिंदगी बदल रही है , जिंदगानी बदला रही है ,
तेरे - मेरे जीने की कहानी बदल रही है |
एक की कमाई पर चलता था घर ,
अब सब की भी कम पड़ रही है |
नज़र बदल रही है , नज़रिया बदल रहा है ,
नज़रंदाज़ करने का तरीका बदल रहा है |
कहते थे कभी , खा कर जाना ,
अब सुनते हैं "आप खा कर आए होंगे |
बातें होती थी आमने - सामने कभी ,
अब हर किसी से नज़रे चुरा कर मिला रहे हैं |
पोशाक बदल रही है , पहनावे बदल रहे हैं ,
छिपाने की बजाय, दिखाने के अंदाज़ बदल रहे हैं |
रिश्ते बदल रहे हैं , नाते बदल रहे हैं ,
जन्म जन्मातर के साथी बदल रहे हैं |
इसमें आश्चर्य क्या ,
और अचम्भा क्यों ,
वक़्त के साथ ...हम भी बदल रहे हैं .......

Sunday, August 7, 2011

तुम्हारी बड़ी

प्रिय भैय्या ,
राखी - टीका जो भिजवाया था ,
वह अब तक मिल गया होगा |
उसके साथ रखा कार्ड ,
मैने खुद बनाया है ,
अपने हाथों से सजाया है ,
जैसे बरसों पहले ,
तुम्हारे माथे पर ,
रोली - चावल का तिलक सजाती थी |
अब, छोटी से बँधवा लेना ,
और मेरा शगुन भी उसे ही दे देना |
बचपन में ग्यारह रूपए से लेकर ,
कॉलेज में पाँच सौ रूपए मिलने तक |
याद है मैं कितना लड़ जाया करती थी ,
बड़ी होने की धौंस दिखा कर ,
सदा  ज्यादा  ही वसूल कर पाती थी |
पापा भी हमेशा हँस कर कहते ,
अरे मुँह न फुला ,तेरा हक़ है ,ले -ले |
माँ पर आँख दिखा समझाती थी ,
जो मिले , उसमें खुश रहना सीख |
पापा का बटुआ ले माँ को चिढ़ाती,
कमरे से हवा हो जाती थी |
तब नहीं नहीं समझी थी ,
अब समझ गयी हूँ |
नहीं  कुछ नहीं चाहिए ,
बस तुम्हारी कलाई का स्पर्श ,
माथे की छुअन .
और ...
मेरे गाल पर हलकी सी चपत |
हर बार की तरह , इस बार भी ,
वह भी छोटी को दे देना |
तुम्हारी बड़ी .........!!

Thursday, August 4, 2011

hakikat

भुलाने की लाख कोशिश में ,
तू हर पल याद आता है |
दिन तो गुज़र जाता है मसरूफियत में ,
शाम होते ही चिरागे मोहब्बत जल जाता है |
माना कि तू है एक सतरंगी ख्वाब ,
हर रात हकीकत क्यों बन जाता है |.

Sunday, July 31, 2011

अबकी तीज

पिछली बार की तरह इस बार भी नहीं आ पाऊँगी ,
अम्मा कह देना ......
झूले की पेंग से , महावर की चमक  से ,
ढोलक की थाप से ,सावन के गीत से ,
तुलसी के चौरे  से ,आम की बौर से ,
मेहँदी की महक से , चूड़ी की खनक से ,
मेघ से - मल्हार से , गुड्डे और गुडिया से ,
पड़ोस की रधिया ताई से  , रामदीन हलवाई से ,
बचपन की सखी - सहेलियों से , भाभी -बहना से ,
हर दीवार-  कोने से , मोहल्ले के हर दरवाज़े से ,
बिट्टो तुम्हारी बहुत दूर है ,
जिम्मेवारी से भरपूर है ,
आसान  नहीं इत्ती दूर का आना ,
बच्चों की पढाई , घर की रसोई ,
रोज़ के काम , मेहमानों का आना - जाना ,
अगली बार शायद .......... आ जाये ....
अम्मा ज़रूर कह देना .............













Tuesday, July 26, 2011

Tum mere ho

तुम , सिर्फ अहसास हो कि नहीं ..
तुम , मेरे आस - पास हो कि नहीं ..
तुम , मात्र एक ख्याल हो कि नहीं ...
तुम , मन की आस हो कि नहीं ...
तुम , होठों की मुस्कान हो कि नहीं ..
तुम,शीतल मंद बयार हो कि नहीं ..
तुम , पन्नो मे दबा गुलाब हो कि नहीं ..
तुम, कही ठहरा वक़्त हो , हो कि नहीं ..
तुम , न होकर भी मेरे हो ,हो कि नहीं .....!!!! 

Thursday, July 14, 2011

dadagiri

कितने सालों से हम हैं यही डटे,
इसी कुर्सी पर बरसों से जमे |
छोटे - बड़े सभी हम से डरते ,
पकड़ी नब्ज , हर की खबर रखते ,
यहाँ की वहाँ और इधर की उधर ,
करने मे बिताता वक़्त हमारा |
हमारे एक इशारे पर ही तो ,
मिनटों में पलट जाता स्टाफ सारा |
लोग कहते हैं हमने रखा है माहोल रंगीन ,
कानाफूसी , गप्पबाजी और अफवाहों  की ,
खाते है हमारे जैसे कमाई सारी|
हमें नहीं पसंद कोई भी बदलाव ,
नई तकनीक , बदलते तरीके सब है बकवास |
जो जैसा है चलने दो ,
इस फेर - बदल से न बदलेगा इतिहास |
ये नए रंगरूट कुछ बटन दबा ,
चेंज लाना चाहते हैं .
एक फाइल अगर मिनटों में खिसक गई ,
तो उसमे क्या मज़ा है .
महीनों तक नाचे ता ता थइय्या ,
उसमें  ही तो उसकी जालिम अदा है |
बात हमारी मनो  जो जैसा है चलने दो ,
कुछ यहाँ की वहाँ कह हमें कान भरने दो |


हाय - हाय हमें ही निकाल दिया ,
ईंट- ईंट से ईंट बजा देंगे, यही धरना करवा देंगे ,
देखते हैं हमारे बिना कितना दिन यह चलते हैं |
तभी किसी ने चेताया ,जोर से हिलाया ,
कितनी बार आपको था समझाया ,
अनेकों बार "मेमो "भी भिजवाया ,
पर आप उसी पर रख चने खा गए |
अनगिनत चेतवानी का भी ,
आप पर कुछ न हुआ असर |
आज इस प्रगतिशील व्यवस्था ,
की आपने धजिय्या उड़ा दी |
खुद को आप बदल न सके और
अब कर रहे है हमी को बदनाम |
खोले अपनी आंखे और देखे चारों ओर,
आप जैसे लोगो का अब नहीं चलता जोर |
सब कुछ सामने आपके बिलकुल साफ साफ़ है ,
पूरी दुनिया के सामने आपके काम की पोल है |
छुपा नहीं है किसी से,सामने है खरा का खरा ,
ऊँगली उठाने से पहले झाँक लो अपने दामन मे भी ज़रा |
यहाँ नहीं होता किसी के साथ कोई भी भेदभाव ,
पारदर्शी है यह प्रणाली , नहीं है दबा या ढका |

Thursday, July 7, 2011

रास और रंग की महफ़िल सजाना चाहती हूँ ,
तुम राग छेड़ो, मैं गुनगुनाना चाहती हूँ |
उम्र भर का साथ नहीं है मुमकिन ,
पल - दो पल तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूँ |..

Monday, June 27, 2011

बावरी सी बूंद

बावरी सी बूंद एक
टप से माथे पर गिरी
चूम कर पलकों को
गाल छूने को चली
पल भर ठिठकी
कुछ भरमाई
एकरस हो
नयनरस से
घुल गयी अब
फिजा में ......

Saturday, June 18, 2011

Pitaa ko

अब समझ सकती हूँ ,
 कैसे   विदा किया होगा ,
अपने दिल के टुकड़े को,
 कैसे जुदा किया होगा |
जीवन जीने की कला ,
सदा मुस्कुराने की अदा ,
तुम से ही तो पाई है |
आपके आशीष ने ,
हर राह सरल बनायीं है |
छुप गए हो उन तारों के बीच ,
जो कभी तुमने मुझे दिखलाये थे |
जानती हूँ तुम हो यहीं - कहीं ,
मेरे हमेशा आस - पास | |
किस्मत है मेरी की आप बने मेरे पिता,
मेरी बुनियाद , संस्कार और मान्यता .....




Tuesday, June 7, 2011

mahka jivan

करके तुम्हें अपना सर्वस्व समर्पण ,
रह गया कोरे कागज़ सा मन |
न कालिख,  न दाग ...
न हर्ष , न विषाद ...
न द्वेष , न क्लेश ....
तुम्हारे प्रेम से परिपूर्ण एक नाज़ुक दर्पण |
न दिन , न रात ...
न धूप , न बरसात ....
न जड़ , न चेतन ....
तुम्हारी यादों की खुशबू से
महका - महका जीवन .....!!

Monday, June 6, 2011

bachpan

मेरे भीतर का बचपन,
अब भी मन मे पलता है |
बारिश की बूंदों को देख,
कागज़ की कश्ती सा डोलता है|
बादल की गर्जन पर ,
बिजली सा चमकता है |
लू के गर्म थपेड़ों में ,
बर्फ के गोले सा पिघलता है |
पूस की ठंडी रातों में ,
अँगीठी की आंच सा तपता है |
बसंत की मीठी बयार में ,
कोयल सा कूकता है |
मेरे भीतर का बचपन ,
अब भी मन में पलता है |...

Sunday, May 22, 2011

बुढ़िया की पोटली

बीच चौराहे बैठी बुढ़िया ,
डाले अपनी छोटी सी टपरी |
बेच रही थी छोटी -बड़ी ,
हलकी - भारी कुछ पोटली |
ले लो- ले लो लेने वालो ,
अपने सुख- दुःख की गठरी |
बुढ़िया की थी साफ़ हिदयात ,

खोल कर देखना है मना
जितना भी  तुम्हे मिला है ,
उसको लेकर मग्न रहो |
सब अपना सुख छाँट रहे थे ,
कनखियों से दूजे को आँक रहे थे |
दाब रहे थे अपना सुख पर ,
ताक रहे थे दूजे का दुःख |
हर कोई पोटली खींच  रहा था ,
एक दूजे पर खीज रहा था |
अब सब अपनी गठरी ले घूम रहे हैं ,
लगती भारी जो कभी प्यारी थी बड़ी |
अब भी नजर दूसरे की पर ही है गढ़ी,
यही गठरी है क्यों  मेरे गले  पड़ी |
काश ली होती मैने भी वही ,
क्यों नहीं देखा मैने पहले सही |
बुढ़िया की टपरी अब भी वहीं है ,
लिखा है  - बिका हुआ माल वापिस नहीं होता ..!!!



Monday, May 16, 2011

पहली बार

पहली बार ऐसा हुआ है ,
हवा ने हल्के से छुआ है |
चरमराते सूखे पत्तो में भी ,
हो रहा संगीत का एहसास |
चिलचिलाती संगीन धूप भी ,
बन गयी मधुमयी शाम ख़ास  |
हल्की - तेज़ रिमझिम सी  बूंदें ,
करा रही  तेरी छुअन का आभास |
उड़ाती हुई यह गर्द धूल भी ,
आलिंगन बन  गयी आस - पास |
पहली बार ऐसा हुआ है ,
हवा ,धूप , बूंदे सब छू गई एक साथ ..
पहली बार ....पहली बार ...!!!!





Monday, May 9, 2011

teri yaad

पलकों की चिलमन से निकल कर ,


गालों की सेज पर ठहर गया ...

तेरी याद में अटका आसूँ,

रुकते - रुकते भी बह गया .....

दिल में दर्द है यह प्यार का मीठा सा ज़रा ,

ज़माने कि हवा लगते ही खारा कैसे हो गया ..........

Sunday, May 1, 2011

adat

गाल पर हाथ रख ,मुस्कुराते हुए ,

उसने कहा.......
अब तुम्हारी आदत सी हो गयी है
तो हमने भी मुस्कुरा कर यही कहा ...
न हूँ मैं सुबह की भाप उड़ाती एक प्याला चाय ,
न रबरबैंड में लिपटा बरामदे में फेंका अखबार ,
ऐसा भी तो कह सकते थे ....
अब तुम्हारा साथ अच्छा लगता है ,
बिन बात यूँ ही खिलखिलाना ,
कुछ कहते - कहते रुक जाना ,
एक साथ बोलना या ,
अचानक चुप हो जाना ,
बस एकटक देखना
क्या है जो यकायक ,
रोक देता है...
क्यों नहीं कह पाते,
मन की परतों मे है जो दबा ,
कुछ अनकहा - अनछुआ सा ,
जो हमेशा हवा में टंगा रह जाता है ,
या फिर अगली मुलाकात की ,
पृष्ठभूमि बन जाता है .....!!!!!!

Monday, April 25, 2011

kab tak

कब तक रहोगे ख्वाब की तरह ,
कभी तो सामने आओ हकीकत की तरह |
कब तक रहोगे दूर सितारे की तरह ,
कभी तो मिलो बहती हवाओ की तरह |
कब तक रहोगे पलकों में नमी की तरह ,
कभी तो छलको रेशमी बूंदों की तरह |
कब रहोगे एक गूढ़   सवाल की तरह ,
कभी तो आओ सुलझे  जवाब की तरह |

Tuesday, April 19, 2011

tum kya jano ?

हैरान ही कर दिया था ,
मैने अपनेआप को ..
जब हम थोड़ा करीब आए थे |
तुम्हारी वो गुलाबी मुस्कान ,
एक युग सा समेटे उस पल में ..
मुझे ताकती वो मद निगाहें ,
बाहुपाश मे बेल सी लिपटी में ..
बादल बन भिगो गए तुम |
बड़ी हिम्मत से तय किये मैने,
ये चन्द कदम करीबी के ..
तुम क्या जानो ......!!


Saturday, April 16, 2011

sapne

सपने सभी देखते हैं ,
कुछ सुबह होते ही ....
ओस की बूंद से पल में  ....
आँखों से धुल जाते हैं |
कुछ कोरों मे अटके ....
किरकिरी सी बन.....
पूरा दिन सताते हैं |
कुछ जुगनू की तरह ...
हरदम टिमटिमाते हैं ...
हौले - हौले से गुदगुदाते हैं |

Sunday, April 10, 2011

jai ho

बड़े जब कुछ कदम एक साथ ,


झुक गया  न्यायकर्ताओं   का परचम


वह उठा , जगा , बड़ा था अकेले ही ,

जुड़ गया पूरा देश देखते ही देखते


जय हो - जय हो - जय -अन्ना हजारे,

चले जब सब साथ तो , तुम जीते , वो हारे....!!

Wednesday, April 6, 2011

जीवन की गंध

नैनों की हलकी आंच में ,
सजाए हैं सब्ज सपने ....
होठों की मस्त धुन ने ,
गुनगुनाये हैं नए नगमे ....
मन के नर्म आंगन में ,
उगाये हैं कुछ पल अपने ....
सींचती , सवांरती , सहेजती ,
बिखरी , बहती , जीवन की गंध ........!!

Sunday, March 20, 2011

आज चाँद

अम्बर पर धीरे - धीरे सरकता चाँद ,
मेरे घर के आंगन मे आ गया ,
अंजुरी जो बनायीं हाथों की ,
तो मेरे और भी करीब आ गया ,
चांदनी में भीगे मेरे सपने ,
आँखों मे जुगनू बन चमकने लगे |
पत्तों से झरती झर - झर किरणें ,
घुलकर सांसों में बहने लगी ,
सर्द - तूफानी एकाकी  रातों मे,
तेरी चाहत की गर्माहट भरने लगी |

Saturday, March 19, 2011

अबकी होली

अबकी होली , कोई याद आ गया ,
सपना जिसका , रातों को जगा गया |
गुलाल हुए गाल , जिसकी तपन  से ,
बहके नयन , जिसकी छुअन से |
बाँहों के तंग घेरे में , जिसकी सिहरते  रहे ,
कसमसाते हम रहे , मुस्कुराते वे रहे |
भीग गया मन , पलक से मोती छलक गया ,
फागुनी इस मौसम में , कोई याद आ गया |

Friday, March 18, 2011

कैसी यह होली ?

कैसी  है यह होली ?
सुनामी का है प्रहार ,
बमों की है बौछार ,
इन्सान ही इनसान से ,
खून भरी खेल रहा होली |
डर - आतंक के साये में,
सहमे - सहमे हैं जन |
बारूद - घृणा की गंध है फैली ,
जल रहे है देश- तड़पे हैं मन |
क्यों नहीं रंगों की तरह ,
हम भी आपस में मिल जाते |
प्रेम , भाईचारे , सदभावना 
के सन्देश हवा में घुल जाते |


Thursday, March 17, 2011

mera ithhas

मैं, न सीता , न राधा,


न ही कुंती या कैकेयी ,

साधारण - सरल नारी


जीवित हूँ , इक विश्वास पे ,

दो मीठे बोलो के प्यार पे ,

घायल कर दे ऐसे नश्तर नहीं ,

चीर दे दिल वो तेवर नहीं


तेरे साथ जुड़ा, मेरा अस्तिव ,

मेरा तन , मेरा मन ,

मेरी वेदना, मेरा अहं....


फिर क्यों ऐसा हुआ ,

तुम अपने मे ही मगन

प्रशन करता है आज ,

मुझसे ही मेरा इतिहास ...........



Wednesday, March 16, 2011

naari

कभी तुझे बैठे नहीं देखा ,
कभी तुझे लेटे नहीं देखा ,
भागती - दौड़ती फिरकनी - सी ,
सबकी चिंता , सबकी फ़िक्र |
दो घड़ी तू बैठ क्यों नहीं जाती ,
अपने साथ वक़्त क्यों नहीं बिताती ,
कंपकंपाते हाथ , लड़खडाते पांवों को ,
अब तो करने दे कुछ आराम |
पर हर बार तू हँस देती है ,
अरे ! बैठ गयी तो बैठी रह जाउँगी,
इस जन्म में तो नहीं पर शायद ,
परलोक जा कर ही आराम पाऊँगी ,
चलने दो जब तक चलता यह तन ,
अपना नहीं , तुम सब में है मेरा मन ............!!!

Sunday, March 13, 2011

अम्मा की जिद्द

माँ की अब यही रहती है वही पुरानी जिद्द ,
बिटिया तुम तो बस लिखा करो चिठ्ठी |
हँस कर कहा, "हम रोज़ ही तो बतियाते हैं ,
फिर काहे को लिखे हम  वही  जो कह -सुन जाते हैं |
पता तो है हमको सबका सबकुछ रोज़ का हिसाब किताब ,
हाथरस वाले मामा की छुट्टन का ब्याह तय हो गया ,
बिना दहेज़ के बहुत ही बढ़िया विदेसी वर मिल गया |
एटा वाले चच्चा  का मंझला बेटा अभी भी है बेकार ,
और उनका बड़का , शादी होते ही घर से निकल गया |
बहुत दिनों से बीमार दाउदपुर वाले काका गुज़र गए ,
अच्छा ही है सोने की सीढ़ी चढ़ सुवर्ग सिधार  गए |
आंगन मे लगे अमरुद के फल,  सुनहरे हो पक गए ,
गाँव के बेकार पड़े खेत, भी कब के बिक गए |
गली के नुक्कड़ की हलवाई की दुकान खूब चलती है ,
जलेबी और समोसे  नहीं अब वहाँ   चाउमीन बिकती है |
परसाल जो भेजी थी, किसी के हाथ  कान की मशीन ,
अब शायद तुम्हें,  सुनने में  कुछ तकलीफ दे रही है |
सारी बातें तो हो जाती हैं लगभग हर रोज़ ,
फिर भी तुम्हरी काहे वही पुरानी जिद्द |
अरी बिटिया ! पत्री  हम बार - बार पढ़ते हैं,
कभी खुद तो कभी गुड्डन से पड़वाते  हैं |
उसे छू - छूकर तुमका ही तो दुलारते हैं ,
सिरहाने के निचे  रख सो जाते हैं ...
तुमको सदा  ही अपने पास पाते हैं............!!!





Sunday, March 6, 2011

बीते पल

बीते पल
अपने मन के आंगन में गाड़े हैं ,
समय से चुराए कुछ अपने पल |
रोज़ सुबह - शाम सींचती हूँ ,
अपनी हसीन  यादों के झरने से |
वक़्त - बेवक्त यह बेल फल जाती है ,
चुन कर उन गुलाबी फूलों को ,
सजा लेती हूँ अपने हृदय के घरोंदे को |
सुवासित हो जाता है मेरे दिल का आंगन ,
तुम्हारे आस - पास होने की महक से |
निगाहें  ढुंढने अब इधर - उधर नहीं जाती हैं ,
तुम्हारी ख़ुशबू अब मेरे बदन से आती है |

Monday, February 28, 2011

मेरी कविता है उदास

जैसे ही लिखने को उठाई कलम ,

कविता ने लगाई जोर से फटकार
इतना मच रहा है यहाँ हाहाकार ,
तू बस डूबी है सपने और प्यार
मासूमों पर हो रहा लगातार वार,
गोली - बारूद की गूंजती टंकार
एक देश की आग , अन्यों मे फैली जाती है ,
अमन - चैन की धज्जियाँ उडती जाती हैं
ऐसे में तू कैसे गीत गा सकती है ,
इश्क -मोहब्बत को कैसे सजा सकती है
मिस्र मे फैली आग , पूरी खाड़ी को जलती है ,
दंगे - चीख - चिल्लाहट से दुनिया दहल जाती है
ऐसे में कैसे करे कोई मिलने - मिलाने की बात ,
चाँद - चांदनी और चमकीली - मदहोश रात
इसलिए आज मेरी कलम है दूर ,
और मेरी कविता है उदास .....!!!



Friday, February 25, 2011

ऐसा क्यों होता है ,

ऐसा क्यों होता है ,


जिन्दगी गुज़र जाती है पर मन का मीत मिलता नहीं


मौसम बदल जाता है पर मन का फूल खिलता नहीं


इस गांठ को सुलझाते यह छोर और फंसता जाता है


ऊपर से हँसता दिल भीतर ही भीतर रोता जाता है


छोटा सा सपना कही आँखों में ही अटका रह जता है


साथ की चाह में सूनापन अधिक बढता ही जाता है


पाने की चाहत में हरदम कुछ खोता ही जाता जाता है


ऐसा क्यों होता है ...ऐसा क्यों होता है ....ऐसा क्यों होता है ???



Tuesday, February 22, 2011

मुट्ठी में बंधा वक़्त

कितना कसके बंधा था मुट्ठी में ,
फिर भी चुपके से निकल गया |
तेरे - मेरे बीच ठहरा वह वक़्त ,
हाथों से रेत सा फिसल गया |
अब भीतर धंस गया है वह पल ,
गहरे मन के किसी कोने में |
मेरे अंदर हम  दोनों  साथ चलते हैं ,
किस्से - कहकहे हवा में तिरते हैं |
पेड़ों से घिरी राह ख़त्म नहीं होती ,
नज़रों से मिली नज़र नहीं थकती |
तेरा अचानक ठिठक कर वह चूमना  ,
मेरा वह हलके से रुक कर सिहरना |
वक़्त जो बिताया था तेरे साथ कभी ,
ठहर गया है कहीं  जो बहता ही नहीं |

Monday, February 21, 2011

ख्वाब

पलकों के भीतर ख्वाबों को पलने दे ,


नशवर ही सही उसे कुछ पल जीने दे


झूठा ही सही, पर ख्वाब तो है - तेरा ,

मन में एक इन्द्रधनुष -सा खिलने दे ,

शीशे सा टूट जाता है ,बड़ा नाजुक है ,

...जब तक रहे , वहाँ इसे चमकने दे


जिन्दगी वैसे ही बेज़ार रुलाती है ,

उन हसीं  लम्हों को याद कर हँसने दे

Friday, February 18, 2011

कपास की तरह

कपास की तरह
कपास की तरह ,
बोया..
उगाया...
सहेजा ...
संवारा ...
चुना....
काता....
बुना.....
सिया....
पहना....
धोया....
कूटा......
निचोड़ा....
झिंझोड़ा ...
फटकार .....
उतारा....
बदला....
गया  हमें ................

Monday, February 14, 2011

जिंदगी का कैनवस

जिंदगी का कैनवस
अपनी जिन्दगी का कैनवस ,
खुद रंगा है |
एक - एक रंग बड़ी हिफाज़त ,
से चुना है |
कई रंग आपस में अच्छी तरह ,
घुलमिल जाते हैं |
कुछ रंग एकाकार हो कर ,
नया रंग दे जाते हैं |
कई रंग लगते ही आपस में ,
जँच नहीं पाते हैं |
कुछ रंगों की कमी अक्सर ,
खल जाती है |
कुछ रंग अन्य सभी रंगों पर ,
हावी हो जाते हैं |
कुछ रंग कितनी ब़ार भी लगाओ ,
खिल नहीं पाते हैं |
कुछ रंग उधार लेकर भी मैनें ,
कभी - कभी  लगाये हैं |
कुछ रंग प्यार से लगाकर ,
फिर मिटाए हैं |
कुछ रंग कितना भी चाह कर ,
भी नहीं लगाये हैं |
कुछ रंग गलती से अनजाने में ,
 जल्दी   में  सजाए हैं |
कई ब़ार तो कैनवस मैंने ,
अधुरा भी छोड़ा है |
कई ब़ार रातों को उठ - उठ कर ,
रंगों को बिखेरा है |
अपनी जिंदगी का कैनवस मैनें खुद रंगा है ..........|


Sunday, February 13, 2011

आज

आज ,


हथेली पर चमकता चाँद ,

पलकों पर हसीन ख्वाब ,

ले चली , तेरी ओर मैं ......

आज ,

नज़रों में तपती रात ,

बाँहों में शीतल चांदनी ,

ले चली , तेरी ओर मैं.....

आज .

होठों पर शोख बिजलियाँ ,

मन में सतरंगी इन्द्रधनुष,

ले चली , तेरी ओर मैं....

आज , आज , आज , आज .....


Thursday, February 10, 2011

aek sawal

कभी काटे नहीं कटता,


कभी रोके नहीं रुकता


बड़ा अजीब वक़्त है यह ,

हमारे कहने पर नहीं चलता


अगर मिल जाये किसी दिन ,

यह वक़्त जो आमने - सामने


पूछूँगी बस उससे यही ...

रेत की तरह हाथ से फिसलना ही तुम्हारी फितरत है ,

हम जैसे ख्वाबगारों को सताना ही तुम्हारी आदत है


कभी तो किनारे पर थम जाया करो ...

तुम ठहरे मस्त आवारा ही सही ..

कभी तो किसी के बन जाया करो ...




Tuesday, February 8, 2011

ढाई आखर

कहते हैं ख़ामोशी की भी जुबां होती है ,


कभी कुछ बातें ऐसे भी बयां होती हैं
,

पर मैं सुन नहीं पाती ...


कहते हैं ऑंखें भी अक्सर बोल जाती हैं ,

कभी कोई अफसाना अपना खोल जाती हैं ,

पर मैं बूझ नहीं पाती.....


एकटक ..

देखना ...

चुप चाप ...

नहीं ! समझ नहीं आते ,

अगर ढाई आखर में ही सिमटा है सब कुछ ..

तो तुम बोल क्यों नहीं पाते ..?



Sunday, February 6, 2011

business school mae dakhila

"आइए- आइए - आइए.....खुल गया नया बिजनिस स्कूल........... !!!


अपने बच्चे का एडमिशन यहाँ करवाइए ,

कुछ सालों में छल, कपट , फरेब से भरपूर ,

एक जीता - जगता पुतला ले जाइये


सहानभूति , नैतिकता , सदाचार , मूल्य ,

यह सब भारी - भारी शब्द बकवास हैं


सिर्फ पुरानी किताबों , या बुजुर्गों के मुंह

से टपकते खाली - खोखले अलंकार हैं


ये दे नहीं पाते रोटी के ऊपर का मक्खन ,

न जुटा पाते विदेश की यात्रा का लागत


हम नहीं करते यहाँ किसी में कोई भेद - भाव ,

थोक के भाव करते हैं तैयार आपका सामान


जालसाजी , धोखा , ढोंग ,हेराफेरी ,भ्रष्टाचार से

ठूंस - ठूंस कर विकसित किया है हमारा पाठ्यक्रम


हम ही उत्पन्न करते हैं अनावश्यक जरुरत ,

और हम ही जुटाते हैं उसकी उट -पटांग रसद


जी हाँ ! ईमानदारी , शुद्धता को रख कर ताक पर ,

छल - कपट का रचते हैं हम नया संसार


यही आज की संस्कृति ,यही है आज की पहचान ,

आइए- आइए कुछ ही जगह बची हैं बाकी ,

जल्दी जल्दी से अपने घर के चिराग को लाइए,

फिर उससे पूरा संसार जलवाइए .............................."



Tuesday, February 1, 2011

तुम्हारी तस्वीर , तुम्हारा रंग

निकालो अपने -अपने रंग ,
भर  डालो यह तस्वीर |
पर आपने बताया ही नहीं ,
कौन सा रंग कहाँ भरूं ?
जो भी , जैसा भी तुम्हें हो पसंद ,
यह है तुम्हारी तस्वीर , तुम्हारी छवि ...
आँखों में थी हैरत , और अधरों पर मुस्कान ,

आकाश में नीला भरूँ या पीला ?
तुम्हें दिखता हो वैसा ,
मुझे तो पीला दिखता है ,
माँ के लहराते आँचल जैसा ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारा है आकाश |

ज़मीं में हरा भरूँ या नीला ?
तुम्हें दिखती हो वैसी  ,
मुझे तो नीली  दिखती  है ,
पापा की गहरी नीली आँखों जैसी ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारी है ज़मीं |

नदी में सफ़ेद भरूँ गुलाबी ?
तुम्हें दिखती हो वैसी ,
मुझे तो गुलाबी दिखती है ,
दीदी की खनकती हँसी जैसी ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारी है नदी |

सूरज में सुनहरा भरूँ या भूरा ?
तुम्हें दिखता हो वैसा ,
मुझे तो भूरा दिखता है ,
दादी के बनाऐ गरम परांठे जैसा ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारा है सूरज |

घर में लाल भरूँ या सतरंगी ?
तुम्हें दिखता हो वैसा ,
मुझे तो सतरंगी दिखता है ,
दादाजी के सुनाये गुदगुदाते किस्सों जैसा ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारा है घर |

निखर कर आई ,
अनोखी तस्वीर ,
चटक , अलग ,
पर बिलकुल अपनी ...............


Monday, January 31, 2011

डर

डर ............
डर का है राज़ चारों ओर ,
डर ही जोड़े सम्बन्ध ..
डर ही बिगड़े सम्बन्ध |
डर ही दिलाये उपलब्धि ,
डर ही गिराए उपलब्धि |
डर ही पहुँचाये आकाश ,
डर ही  दिखाये पाताल |
डर ही सजाये ऊँचे सपने ,
डर ही बिखेरे ऊँचे सपने |
डर ही चलाये दुनियादारी ,
डर ही तोड़े दुनियादारी |
हारने का डर दिलाये जीत,
जीतने का डर कराये हार |

tufaan

ठंडी हवा के झोंके सा, गुज़र गया वो ,


पल भर को ठिकठा,नयन भर देखा ,

बर्फानी तुफानी सा झिंझोड़ गया वो ,

कह गया बस हल्के - से जाते - जाते,

अब तेरा हो गया मैं...तेरा हो गया मैं .....

Saturday, January 29, 2011

तुम न समझे

तुम न समझे
तुम कभी न समझे ,
कैसे छू गए हो  ,
तुम मुझे ..............|
मेरे सतरंगी ख्वाबों की हकीकत हो तुम ,
मेरे लरजते होठों की इबादत हो तुम ,
तुम कभी न समझे ,
कैसे छू गए हो ,
तुम मुझे ...............|
मेरी झिलमिलाती कल्पना की सच्चाई हो तुम ,
मेरी अनकही कविता की गहराई हो तुम ,
तुम कभी न समझे ,
कैसे छू गए हो ,
तुम मुझे ................|
मेरी हर करवट की सरसराहट हो तुम ,
मेरी अधसोई  रात की खुमारी हो तुम ,
तुम कभी न समझे ,
कैसे छू गए हो ,
तुम मुझे ................|
मेरी अलसाई सुबह की अंगड़ाई हो तुम ,
मेरी बौराई शाम की मदहोशी हो तुम ,
तुम कभी न समझे ,
कैसे छू गए हो ,
तुम मुझे ....................|
मेरी मदमस्त पलकों की शबनम हो तुम ,
मेरे गुम हुए दिल की धड़कन हो तुम ,
तुम कभी न समझे ,
कैसे छू गए हो ,
तुम मुझे ....................|

माँ तेरी जैसी

माँ तेरी जैसी
सब कहते हैं मैं तेरी तरह दिखती हूँ ,
तेरी तरह हँसती और रोती हूँ |
सुन कर गौरवान्वित हो जाती हूँ ,
पर माँ मेरी रोटी, तेरी तरह नहीं बनती ,
जैसी बनाती है तू ,नर्म - नर्म - गोल ,
पतली - करारी और ढेर सारा घी ,
मेरी रोटी वैसी क्यों नहीं बनती ......|
उबली दाल में वह हींग- जीरे का छौंक,
उसकी महक से ही भूख जाये लहक ,
माँ मेरी दाल से वह महक क्यों नहीं आती ...|
बासी रोटी की चूरी और खूब  सारी शक्कर ,
छाछ भरे ग्लास में तैरता ढेला भर मक्खन ,
माँ मेरी चूरी में शक्कर ठीक से क्यों  नहीं पड़ती ..|
टिफिन में परांठा और आम के आचार की फांक ,
जीभ को तुर्श कर जाये वह मीठी सी - खटास ,
माँ मेरी आचार की फांक में वह खटास क्यों नहीं आती ..|
स्टील के बड़े ग्लास में गर्म - गर्म  दूध की भाप ,
उस पर तैरती मोटी - गाढ़ी मलाई की परत ,
माँ मेरे दूध में वैसी  परत क्यों नहीं पड़ती ...|
जब मैं हूँ तेरी जैसी माँ......!
 तो मेरी रोटी तेरी जैसी क्यों नहीं बनती ...???

Wednesday, January 26, 2011

कोई तो जगह होगी

कोई तो जगह होगी ,
जहाँ चाँद और सूरज,
एक साथ मिलते होंगे |

जहाँ धूप और छाया ,
एक दूसरे में घुलते होंगे |

जहाँ सपने और हकीकत ,
एक साथ सजते होंगे |

जहाँ हँसी और दर्द ,
एक दूसरे पर मरते होंगे |

जहाँ अपने और पराये ,
एक साथ मिलकर हँसते होंगे |



क्या तुमने कभी महसूस किया है ?

क्या तुमने कभी महसूस किया है ,
भोर की सुनहरी धूप में,
कली का हौले से चट्खना ,
धीरे - धीरे पंखुरियों का खिल जाना |
क्या तुमने कभी महसूस किया है ,
घास पर लेटे- लेटे ,
आकाश में  स्याह -सफ़ेद बादलों में ,
हाथी- घोड़े आदि का बनाना |
क्या तुमने कभी महसूस किया है ,
खिली चटक चांदनी में ,
अधमुंदी- नशीली  पलकों पर,
हलके - नर्म  सपने सजाना |
क्या तुमने कभी महसूस किया है ,
पेड़ से सूखे- पीले  पत्ते का ,
हवा में  तिरते -तिरते ,
नजाकत से ज़मीन को छू जाना |
क्या तुमने कभी महसूस किया है................?

Tuesday, January 25, 2011

dhup sardiyo ki

नरम , मखमली ,
आंचल के कोने सी ,
लहरा जाती है सर्दियों की धूप |
नन्हें बालक की ,
मासूम हँसी सी ,
गुदगुदा जाती है सर्दियों की धूप |
रूमानी अहसास सी ,
हौले - हौले से ,
छू जाती है सर्दियों की धूप |
नयी नवेली वधू की ,
लजीली चितवन सी ,
रोमांचित कर जाती है सर्दियों की धूप |
प्रेमी की याद की ,
हल्की छुअन सी ,
सहरा जाती है सर्दियों की धूप |

Azadi ka jshan

आज़ादी फिर तुझे याद किया ,
तिरेंगे आज फिर तुझे सलाम किया |
हर ईमारत पर तुझे बुलंद किया ,
हर साल की तरह  फिर तेरा जशन मनाया |
तुझे एक कोने में रख बाद में भुलाया,
तुझमे ही लपेट कर एक -दूसरे को घूस खिलाया |
तेरे नाम की जपते - जपते माला ,
हमने तो अपना घर भर  डाला |
आज़ादी का मतलब खुल कर मांगों ,
खुल कर खायो और खिलायो |
गरीबी , बेकारी, भुखमरी अब  तेरी सहेली है ,
जी रहा कैसे इन्सान यह एक पहेली है |
हर कोई अधिकारों के नारे लगता है ,
फ़र्ज़ को जेब में रख कर भूल जाता है |
इंडिया shinning , incredible इंडिया ,
सिर्फ टी वी पर दिखाई  देते हैं |
आज भी मानव रोटी के लिए एक दूसरे  से ही लड़ जाता है |
पंचवर्षीय योजना द्रौपदी के चीर सी बड़ जाती है ,
पर विलासी दुर्योधन की भूख नहीं मिट पाती है |
भाषा ,प्रान्त ,धर्म सभी में कोई न कोई मनमुटाव है ,
बुत बना है देश , जिसका न कोई माज़ी न रहनुमार है |
सब बनाना चाहते  हैं  अपनी - अपनी अलग पहचान ,
कैसे गाऊँ मैं " मेरा भारत महान ....मेरा भारत महान ......"

Monday, January 24, 2011

dafan

सबके अपने - अपने सपने ,
सबके अपने अपने सच ,
सबकी अपनी - अपनी सीमाएँ,
सबकी अपनी - अपनी आकाक्षाएँ,
मर्यादा , सिद्धांतों , रिश्तों की कसौटी पर ,
सबका कुछ न कुछ दफ़न ...........

Sunday, January 23, 2011

अम्मा का बहाना

माँ बार - बार ऑंखें रगड़ रही थीं ,
"आज लकड़ी बहुत गीली है ,"
खिसयानी हँसी कुछ और ही कह रही थी |
बापू के तीखे तेवर और ऊँची आवाज़ ,
घर  के कोने- कोने को दहला रहे थे ,
बच्चे और अधिक अम्मा से सटे जा रहे थे |
अनपढ़ - अनगढ़ , सीधी - सादी माँ ,
मूक गाय सी आँसू बहा रही थी |

तुम सब सोर कम करो ,
तुमरे बापू कुछ परेसान हैं |
बापू की हर परेशानी का अम्मा क्यों है शिकार ,
गलती चाहे हो किसी की माँ पर ही क्यों होता है वार |
आखिर कब तक वह सहती रहेगी  यह अत्याचार  ?

न बिटिया हमका कोई दुख नहीं ,
यह तो मरद का काम ही है गरजना - बरसना ,
रोब -दाब , अहं यह सब है उनकी पहचान |
हमरे असून का , का है जे तो ज्यूँ ही बहे जाते हैं ,
तुमरे बापू दिन भर कहीं भई रहे ,
कम से कम साम को घर तो लौट आते हैं ,
हमरे जीने के लिए तो इत्ता ही बहुत है |
मुनिया टुकुर - टुकर अम्मा को निहार रही थी ,
क्या यही नियति मेरी भी होगी यही सोच रही थी |

तभी मुनुआ अम्मा से चिपट गया ,
तेरे लिए मैं बिजली का चूल्हा लाऊंगा,
अम्मा तेरा हर दुख अब मैं उठाऊंगा |
अम्मा ने प्यार भरी  चपत लगाई,
यह सब करना जब आए तेरी लुगाई |

मुनुआ अम्मा में और गद गया ,
मुनिया ने बजाई तली और बोली ,
मैं अपना चूल्हा खुद लाऊँगी ,
अपनी ऑंखें यूँ ही न व्यर्थ बहाउंगी |

अम्मा ने धैर्य से सर पर हाथ फेरा ,
हाँ , तेरा हर सपना जरुर पूरा करवाउंगी  |
अब बापू के विरोध से भी ,
मुनिया पढने जाती है ,
घर आ अम्मा को किस्से - कहानी सुनती है |

अम्मा अब भी ऑंखें रगडा करती है ,
अपनी नहीं , बापू की ऑंखें पौंछा करती है ,
खटिया पर पड़े बापू गों - गों करते हैं ,
उनकी आँखों से अविरल बहते आंसू मानो ,
अपराध बोध से ग्रस्त क्षमा याचना करते हैं |

मुनिया - मुनुआ कभी - कभी मिलने आते हैं ,
लाख चाहने पर भी अम्मा को  साथ नहीं ले जा पाते,
अम्मा बापू की सेवा में दिन -रात बिताती है ,
उसे ही अपने भाग्य  का लेखा मान कर तृप्त हो जाती हैं |