Thursday, December 16, 2010

Kitaab - si

वह
पुरातान ग्रन्थ सी ,
सिर्फ बैठेक की शेल्फ पर सजती हैं  |
वह
सस्ते नॉवेल सी ,
सिर्फ फुटपाथ पर बिकती हैं  |
वह
मनोरंजक पुस्तक सी
उधार लेकर पढ़ी जाती हैं  |
वह
ज्ञानवर्धक किताब सी ,
सिर्फ जरुरत होने पर पलटी जाती हैं  |
गन्दी , थूक, लगी उँगलियों से ,
मोड़ी, पलटी , और उमेठी जाती हैं |

पढ़ो हमें सफाई से ,
एक - एक पन्ना एहतियात से पलटते हुए ,
हम सिर्फ समय काटने का सामान नहीं ,
हम भी इन्सान है , उपहार में मिली किताब नहीं .................

Sunday, December 12, 2010

Munni badnaam hui

कल रात एक वारदात हुई , कॉल - सेंटर से लौटते हुए ,
मुन्नी बदनाम हुई .............|
गली - नुक्कड़ - और मिडिया में , इसकी चर्चा सारे आम हुई |
किसी ने कहा भई , क्या ज़माना आ गया है ,
इन लड़कियों को फैशन कम करना चाहिए ,
अपने - आप मुसीबत को न्योता देती हैं ,
फिर उस बात को ले कर कोर्ट - कचहरी में रोती हैं |
मतलब अगर पर्दा रह गया तो , अपराध कम हो जायेंगे ,
फिर यह भेड़िये नज़र नहीं उठा पायेंगे ?
तो फिर क्यों न ऐसा किया जाये ,
उन दरिंदों की आँखों पर पट्टियाँ , बांध दी जाये |
ताकि हर मुन्नी चैन की साँस ले सके ,
विक्षिप्त इस समाज में इज्ज़त से जी सके |