Monday, December 6, 2010

Shabd

शब्दों का माया जाल ..
रंगहीन ,
गंधहीन ,
 सम्वेदेन्हीन ,
शब्द कोरे शब्द .....
खोखले ,
बनावटी ,
मटमैले ,
पन्नों पर बिखरे - बिखरे ...
हवा में तिरते - तिरते ,
सर्पीली गुंजलिका से ,
शब्द ही शब्द ........
मेरे होठों से ,
तुम्हारे कानों तक ,
रूप बदलते ....
कलम की स्याही से ,
दिल की गहराई तक ,
अर्थ बदलते .....
शब्द ........शब्द ........ आधे ...अधूरे |

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