Tuesday, September 14, 2010

band khazanaa

सूखी वे पाँखुरियाँ,
आज भी ताज़ा हैं ,
पीले - मटमैले पन्नो में |

उलझी है लट,
आज भी माथे पे ,
छुई थी जो तूने बार -बार |

पलकों मे मोती ,
रखे हैं अभी तक ,
याद है उन लम्हों की |

दुपट्टे का कोना ,
अनछुआ , अनधुला है ,
फेरा था चहेरे पर जिसे |

चिंदी -चिंदी वह टिकेट ,
बटुए के कोने मे है दबा ,
साथ बिताये पलों  की दास्तान |

ये सब बंद है ,
मन की सिलवटों में ,
जब - तब खोल जिसे झाँक आती हूँ ,
एक नया जीवन जी आती हूँ ............

इति ....

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