Wednesday, June 16, 2010

ahsas

यह आधा - अधूरा सपना मेरा ,
अक्सर मुझे रातो को जगाता है |
तुम्हारे आस पास होने का भ्रम ,
मुझे चक्रव्यूह  सा भरमाता है |
ब़ार - ब़ार छूती हूँ माथे की लकीरों को ,
जहाँ छुआ था तुमने ,
वह गर्म अहसास अभी भी मुझे ,
अग्निशिखा सा जलाता  है |

इति ..............

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